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कविता

मशहूर

सुमित पी.वी.


अखबार में अक्सर उसकी तसवीर
छपकर आती थी
मेरी निगाहें उसे गौर से देखने लगीं
एक दिन पापा से मैने पूछा
पापा यह कौन है?
बड़ा होकर मुझे इसके जैसा
बनना है।
नहीं बेटा, यह आदमी अच्छा नहीं
डाकू है, लुटेरा है।
लेकिन मेरे मन में एक-एक कर
सवाल उमड़ रहे थे
कुछ भी हो
डाकू, लुटेरा, हत्यारा
मशहूर तो है न? फिर दिक्कत क्या?

लंबे अतराल के बाद
परसों फिर उसकी तसवीर
अखबार में छपकर आई

फाँसी की सजा मिली है उसे!

लेकिन तब तक बहुत देरी हो चुकी थी
उस के दिखाए रास्ते पर

मैं बहुत आगे पहुँच चुका था!


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